Wednesday 12 April 2017

दास्तान दिल के अमीर की...स्टोरी- गणपत भंसाली, सूरत




खोमचे पर इडली-दाबेली बेच कर महज डेढ़-दो सौ रुपया रोजाना कमाने वाले जयदेव डांगी दिव्यांग ग्राहकों से नाश्ते का पैसा नही लेते.........

नित्य की दिनचर्या के तहत सूरत के भटार स्थित विवेकानंद गार्डन से मॉर्निंग वॉक आदि पूर्ण कर अपने घर की ओर लौट ही रहा था कि यूनिवर्सिटी रोड पर स्थित पतंजलि मेगा स्टोर के समीप एक मोटरसाइकिल पर बने खोमचे पर नजर पड़ी, जो इडली व दाबेली जैसे साउथ इंडियन व गुजराती व्यंजनों का बिक्री केंद्र था, मेरे लिए आकर्षण का विषय था खोमचे पर लगा वो बेनर, जिस पर अंकित था कि "दिव्यांगों से अल्पाहार के पैसे नही लिए जाते" ये बेनर देख मेरे मन मे जिज्ञासा जगी कि क्यों न इस खोमचे वाले से इस अनोखी समाजसेवा का उद्देश्य पूछा जाए ? फिर क्या ! जहां चाह, वहां राह की तर्ज पर मेने अपने व्हीकल को एक तरफ पार्क किया और पहुँच गया खोमचे वाले के पास, सर्व प्रथम तो मेने उनको अपना परिचय दिया और फिर उनके बारे में जानकारी लेनी शुरू की तो विदित हुआ कि उनका नाम जयदेव राठौड़ (डांगी) हैं, व वे मूलतया राजस्थान के मेवाड़ सम्भाग के उदयपुर जिले के भींडर नगर के निकटवृति कस्बे के निवासी हैं और पिछले एक दशक से सूरत के पिपलोद विस्तार में रहते हैं, मेने उनसे प्रश्न किया कि दिव्यांगों को निःशुल्क रूप से अल्पाहार कराने का चिन्तन आपके मन-मष्तिष्क में कैसे उभरा ? तो उन्होंने बताया कि मेरी धर्मपत्नी स्वयं दिव्यांग हैं, अतः में दिव्यांगों के दर्द को बखूबी समझता हूं, अतः मेने जब इडली-दाबेली का यह खोमचा लगाया तो सर्व प्रथम यह तय कर दिया कि दिव्यांग व्यक्तियों से किसी भी सूरत में नाश्ते के पैसे नही लूंगा, भले ही मुझे सारी की सारी सामग्री हर रोज दिव्यांग बन्धुओं-बहिनो को फ्री में क्यों न खिलानी पड़ जाए , जब मैने पूछा प्रतिदिन कितने का व्यापार कर देते हो? तो उन्होंने बताया कि मैने तो अभी-अभी अपना कारोबार शुरू किया ही हैं, अतः गल्ला कोई खास नही होता, प्रति प्लेट 20 रुपये की दर से प्रतिदिन 300-400 रुपया का बिजनेस ही कर पाता हूँ, जिसमें 150 से 200 की कमाई ब मुश्किल ही हो जाती हैं, जब मेने जयदेव से पूछा कि प्रतिदिन कितने दिव्यांग इस खोमचे तक पहुंचते हैं? तो उन्होंने कहा कि मैने नया -नया कारोबार शुरू किया है अतः लोगों को खबर नही होने से अभी तक तो महज दो-तीन विकलांग बन्धु ही यहां पहुंच पाते हैं, एंव मेरे यहाँ से नाश्ता करते हैं, न बल्कि नास्ता अपितु कुछ बॉटलें पानी की भी अपने घर से साथ मे लेकर आते हैं, जो भले ही ग्राहक ना भी हो, सभी के लिए रखते हैं, जयदेव ने इडली-दाबेली आदि के नाश्ते का ठेला मजबूरी वश लगाया, इसके पीछे का दर्द को उजागर करते हुए उन्होंने बताया कि पहले मेरी सूरत के पिपलोद विस्तार में कपड़े की दुकान थी, लेकिन दुकान पर आने वाला महाराष्ट्र मूल का एक निवासी जो सूरत के डिंडोली विस्तार में रहता था ने मेरी दुकान से लगभग डेढ़ लाख का उधारी में कपड़ा खरीदा ओर पेमेंट नही चुकाया, उसने मेरे जैसे कई व्यापारियों से लगभग 15-16 लाख का कपड़ा खरीद भुगतान नही किया है, इस कारण मुझे मेरी चलती दुकान को बंद करनी पड़ी, हालांकि जयदेव सुबह-सुबह दो तीन घण्टे तक ही अल्पाहार का खोमचा लगाता हैं, और शेष समय मे जयपुरी बेड शीट व बेंगल का घर से ही बिजनेश करता हैं, जयदेव पहले सऊदी अरब के कुवैत शहर में रहते थे, जहां उनका साइबर कैफे का काउंटर था, अच्छा-खासा बिजनेश चल रहा था कि वह साइबर कैफे के संचालन सम्बन्धी कुछ अनियमियता बरतने पर वे कानूनी शिकंजे में फंसने के कगार पर पहुंच गये थे, इस आरोप में उन्हें एक माह तक की जेल हो सकती थी, ओर पासपोर्ट भी ब्लैकलिस्टेड हो सकता था, लेकिन खतरे को भांपते हुए जयदेव ने कुवैत में निवास कर रहे अपने फूफा की सलाह मानी और वहां से अपना कारोबार समेट कर इंडिया आ गया, यहां आकर उसने पिपलोद में कपड़े की दुकान प्रारम्भ कर दी, जयदेव ने एक विकलांग गुजराती राजपूत लड़की से लव मैरिज की थी, जयदेव बताते हैं कि जब वे कुवैत रहते थे, तब आज के दौर की तरह वाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर जैसे सोश्यल मीडिया की बजाय याहू मैसेंजर का चलन था, इस माध्यम से जयदेव का सूरत की राजपूत लड़की से सम्पर्क हुआ, करीब दो साल तक मैसेंजर पर चेटिंग करने के बाद जयदेव ने उस लड़की के समक्ष अपने प्यार का इजहार किया और वैवाहिक बन्धन में बन्धने का प्रस्ताव दिया, तो लड़की में कहा में शादी नही कर सकती, तो जयदेव ने कारण पूछा, तो उसने बताया कि में विकलांग हूं अतः में शादी नही करूंगी, तो जयदेव ने कहा कि तुम जैसी भी हो, में तुमसे ही विवाह करूँगा, आखिर सच्चा प्यार रंग लाया और दोनों वैवाहिक बन्धन में बन्ध गए, जयदेव एक पुत्री के पिता हैं, उन्होंने बताया कि दिव्यांग लड़की से शादी करने का मेरा इरादा शुरू से था, क्योंकि दिव्यांगों के प्रति मेरे मन मे अगाढ़ वात्सल्य भाव शुरू से समाए हुए हैं, यही वजह हैं कि में मेरे खोमचे पर दिव्यांगों से नाश्ते के पैसे नही लिए जाते, बहरहाल जयदेव डांगी के जज्बे एंव अप्रितम वात्सल्यय भाव को नमन कि वो स्वयं अभावों की ज़िंदगी जी रहे हैं और उसके बावजूद उनके मन मे सेवा का भाव उमड़ा हुआ रहता है.... जयदेव फेसबुक आदि सोश्यल मीडिया पर Dev hari om dangi के नाम से जुड़े हुए हैं.....
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स्टोरी- गणपत भंसाली, सूरत

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